सोमवार, 9 जून 2008

मौन हो जाता है समुद्र भी कभी


हम एक चढ़ाई से उतरकर दूसरी चढ़ाई पर चढ़ रहे थे । पेड़ ऊंचे और घने थे । आजकल उसे चढ़ाई और उतार दोनों के बीच भेद करने में बड़ी परेशानी होने लगी है । पहले वह अपने शहर की सबसे ऊँची चली गई सड़क की चढ़ाई धूपभरी दोपहर में और पैदल चलकर आसानी से चढ़ लेता था, पर आज उससे कार पर भी चढ़ाई चढ़ी नहीं जा रही है । कार ऊपर चढ़ रही है और भीतर वह हाँफ रहा है ।
गर्मियों का मौसम नहीं है । गर्मी अभी पास से होकर गुजरी है । हवा के झूले पर झूलते पेड़ उसके सामने से गुज़र रहे हैं । पर, उसका द्यान उसकी ओर नहीं है ।अखिल उतर गया था । रास्ते में । शिशिर से उसकी बहस हुई थी । वह सोच रहा था कि कितनी सड़ी-सी बात पर शिशिर ने उससे बहस की । शिशिर के पास अनुभव नहीं है । वह क्या नहीं कर सकता …? आज उसके इशारे से हर बात हो सकती है, पर शिशिर मानता नहीं, इस बात को ....खैर, कभी समझेगा ।...मुझे क्या...। समय के साथ वह भी समझ जाएगा कि सच क्या है । सिर्फ़ लड़की और बीयर को ज़िंदगी बनाकर नहीं जिया जा सकता । एक समय तक ठीक है, फिर..., उसके बाद ज़िंदगी अलग हो जाती है । शिशिर के पास स्टील फैक्टरी है । दो-तीन कृषि फार्म हैं । महानगर की सबसे महंगी कॉलोनी में उसका घर है । उसकी अच्छी स्थिति और बुरी लगने वाली चाल को सबने मान्य कर लिया है । अब किसी को दिक्कत नहीं है ।
फिर, कार सड़क की ढलान पर है । चक्करदार सड़क पर कभी नीचे उतर कर कभी ऊपर खिंचते हुए वह सोच रहा है । कार के शीशे के बाहर उसकी नज़रें आकाश पर हैं । उसने एक बीयर पी थी । नशा थोड़ी देर में हल्का लगने लगा है । उसने ड्राइवर से कार सड़क से थोड़ा नीचे उतारकर रोकने कहा ।फिर उसने ड्राइवर से कहा कि दो-बीयर निकाल लाये । बर्फ के बड़े बॉक्स में पड़ी बीयर ठंडी थी । उसे कल वाली लड़की याद आ गई । लड़की क्या...एक नाम था । रात भर को बिस्तर पर आने वाली लड़की । कोई नाम दे सकते हैं उसे । पर उसकी एक लाइन बीयर की झनझनाहट में अब भी गूँज रही थी ।... हर लड़की एक दिन औरत बन जाती है । एक पूरी औरत...। उसे थोड़ा नशा चढ़ रहा था .लड़की ने आगे कहा था-... पर लड़की से औरत बनती हुई लड़की को यह मालूम कभी नहीं पड़ता है कि पत्नी और औरत में कितना अंतर होता है ...। समाज खूब नया हो गया है ...। लोग नये हो गये हैं । होटल नये हो गये हैं । होटलों की सज़ावट नई से नई होती जा रही, पर...। वह रुक गई । उसने पूरे गिलास भर बीयर डाली और आधा गिलास एक झटके में गटक गई । अब वह अधलेटी से उसके ऊपर थी और उसने उसी अंदाज़ में लम्बी सिगरेट जला ली । कमरे की छत की तरफ़ उसने धुएं के गुब्बारे उड़ाये । वह कुछ पल ऊपर देखती रही ।
वह चुप था । उसने अपनी बीयर का गिलास मुँह से लगा लिया । वह काली सिगरेट पीता था और उस पर लदी सफेद सिगरेट पी रही थी । उसने लड़की को अपने ऊपर से उठाया नहीं और न ही फिलहाल उसे उसके बदन से खिलवाड़ का मूड था । वह गटागट नहीं, बल्कि धीरे-धीरे बीयर पीना चाहता था । एक गिलास बीयर को एक घंटे में । जबकि, लड़की आधी बोतल बीयर दस मिनट में पी गई थी । उसे लगा कि एक सिगरेट और पी ली जाए । वह कुछ सोच रहा था । अभी उसका लड़की पर ध्यान नहीं था । लड़की उस पर लदी थी । लड़की सुंदर थी... उम्र को वर्ष से नापने वाले अंदाज़ से कहीं ज़्यादा सुन्दर । वह यह नहीं सोच रहा था कि लड़की सुन्दर है...और रात के बाद चली भी जाएगी...। से लड़की से ज़्यादा सिगरेट और बीयर में मजा आ रहा था । अधलेटी लड़की उसके ऊपर चढ़ती आ रही थी ।
उसकी कार चक्करदार पहाड़ी रास्ते पर आधी दूरी तक चढ़ आई थी । बीयर की झनझनाहट में रात साथ छूट जाने के बाद भी वह लड़की अभी तक सकेध्यान से क्यूं नहीं उतरी ।पहले तो ऐसा नहीं होता था । शिशिर के साथ यह ज़रूर था कि वह बिस्तर सी चली गई लड़की को लम्बे समय तक और बार-बार याद करता था । यहाँ तक कि वह अपनी पत्नी को छोटी-छोटी सी बात का जब-चब जिक्र करता रहता था । सड़क के किनारे खड़ी कार के भीतर एक गिलास बीयर वह एक झटके में पी गया । उसने दूसरी बार भी एक गिलास भर बीयर डाली और पी गया । एक-साथ दो गिलास बीयर पी जाने के बाद सोचा- इस तरह एकसाथ और एक झटके में उसने कब बीयर पी थी । उसे इस समय ऐसा कुछ याद नहीं आ रहा था ।
एक बार फिर कल वाली लड़की उसके ख्याल में आ गई । उसे मालूम है कि वह उस लड़की के ख्याल से बचने के लिये... या, फिर उसकी मीठी याद से जुड़ने के लिए बीयर नहीं पी रहा था । उसे एक लड़की सिर्फ़ एक लड़की से ज़्यादा और कुछ नहीं लगती थी । पर, यह लड़की उसे दूसरी बार क्यूं याद आ रही है ।
वह उसके ऊपर अधलेटी है । वह सिगरेट के छल्ले बवा में उछाल रही है ।उसने कहा था- हर लड़की एक दिन औरत बन जाती है, एक पूरी औरत । पर लड़की से औरत बनती लड़की को कभी नहीं मालूम पड़ता कि पत्नी और औरत में कितना अंतर होता है। वह पूरी रात उसके ऊपर और नीचे होती रही । वह समय को कभी गिन कर अथवा केलकुलेटर के हिसाब से नाप नहीं पाता । उसे इतना ज़रूर याद है कि उसने जाते समय कहा था कि वह अब तसल्ली से एक पूरी बोतल बीयर पीना चाहती है । उसने तब अपने पैकेट में पड़ी दस-बारह सिगरेंटे एक-एक करके ऊँगलियों से तोड़-तोड़कर फेंक दी थीं । हर लम्बे घूंट के बाद वह सिगरेट को लगभग झटके से तोड़कर फेंकने का प्रयास करती । कभी उसकी ऊंगलियाँ तेज़ चलती थीं ... कभी धीमी हो जातीं । वह बीच में कुछ रही हो, ऐसा भी नहीं लगात था सने अपनेबांये पैर को दायें पैर के ऊर रख लिया था । उसे अपी सुन्दरता का न तो भान था और न उसने कभ यह जताने का प्रयास किया । वह बोतल भर बीयर पीने तक उसी में उलझी रही और सिगरेट तोड़ती रही । बीयर का आखिरी गिलास पीते समय उसने उसकी तरफ़ आँखें उठाई । वह उनींदी और नशे में थी । उसने जाते समय तक कोई बात नहीं की.... न रात की... और न ही किसी शिकायत की बात वह उनींदी थी, पर उदास नहीं । पर उसकी आँखें दूर बहुत दूर चली गई थीं । उसने जाते समय बस एक सिगरेट माँगी थी ।
-‘तुमने तो इतनी सारी सिगरेटें तोड़ ड़ालीं...,पूरा ढ़ेर लगा है नीचे...,यहाँ से वहाँ तक...दूर-दूर तक उछाल कर फेंकी है तुमने सिगरेटें...।’ पूरी रात लगभग न बोलने की स्थिति के बाद पहली बार वह लड़की के सामने खुला था ।
-‘मुझे काली वाली सिगरेट पीनी है...मुझे लगा कि बड़े लोग ऐसी सिगरेट पीते हैं...तो मुझे भी काली सिगरेट पीनी चाहिए ।’ उसकी जुबान लड़खड़ा नहीं रही थी । वह उनींदी तो ज़रूर थी ।
उसने लड़की को सिगरेट निकाल कर दी । बारिश थमने के बाग जुलाई के महीने के आखिरी दिन थे । हवा में काफी ठंडक है और वह खिड़की से टकरा कर भीतर चली आ रही है । हलकी सुबह आकाश से उतरने लगी है ।
-‘पूरा पैकेट रख लो ।’ उसने कहा था ।
-‘नहीं...। मैं यह नहीं कहूँगी कि बाक़ी आपके काम आएगी...पर, एक चाहिए । यह ज़रूर कहूँगी कि रईस बनने का अपना ही मजा है । एक दिन ऐसी ही काली सिगरेट के साथ फिर मिलूंगी ।’ यह कहते हुए पहली बार लड़की उदास हुई थी । उसने लड़की को पूरी रात न तो उदास देखा और न ही कुछ सोचता हुआ पाया ।
वह तोड़कर फेंकी गई लम्बी सफेद सिगरेटों के टुकड़ों के ऊपर से चलते हुए उसका हाथ दबाकर निकल गई । न उसने नज़रें झुकाईं और न ही नज़रें मिलाईं । उनींदी लड़की मस्त चाल में उसके सामने से निकल गई । एक बार कुछ दूर जाकर वह लौटी । बीच में रूक कर कुछ सोचा । पर, उसके पास लौटी नहीं । मुड़ कर वह कार की तरफ़ बढ़ी । लड़की की कार सड़क पर दौड़ रही थी ।
सड़क के किनारे खड़ी कार में उसने सटासट दो गिलास बीयर पीने के बाद कुछ सोचा । उसे याद आया कि वह आनंद को बीयर का ऑफर करना भूल गया था । ऐसा अक्सर होता है । उसने न तो आनंद से इसके लिए माफ़ी माँगी और न इसे ज़रूरी समझा । उसने कहा- ‘आनंद तुम भी लो ।’ आनंद ने दूसरी बोतल ली और एक गिलास उठा लिया । अब वह बोल रहा है- ‘यकीन मत करो...तुम किसी पर यकीन मत करो...।’ मेरी बात मानो...और यह थोड़ा समय...समय का एक पूरा टुकड़ा बीतने के बाद बताऊँगा मैं...। मैं...यानी हम...हम बतायेंगे यह बात...। हम पर तुम्हें यकीन करना चाहिए...विश्वास करना चाहिए...। यदि ‘हाँ’ बोलो तो आगे चलूं ।’ उसने कहा और वह चुप रहा ।
‘...।’
- ‘समझो...चुप रहने से भी कुछ नहीं होगा...और, हाँ, ज़्यादा बोलने से भी नहीं...। हमें अपना संतुलन बना कर रखना चाहिए...और ‘संतुलन’ हमेशा बनाए रखना चाहिए । और यह भी कि...जब अपने मन में लगे कि ‘संतुलन’ तोड़ देना चाहिए...तो, संतुलन तोड़ देना चाहिए...। ऐसा करते समय लम्बा सोचना नहीं चाहिए...। ‘संतुलन’ बनाने के लिए सोचना चाहिए, तोड़ने के लिए कतई नहीं । तोड़ना है तो, फिर सोचना क्या...? देखो नदी कभी नहीं सोचती...। नदी कई बार समृद्धि का कारण है तो कई बार विनाश का कारण भी । यह मानो कि समृद्धि और विनाश एक साथ घूमते रहते हैं...ऊपर-नीचे...। किसी को तुम ‘ऊपर-नीचे’ मान कर पक्के तौर पर...और हाँ पक्के तौर पर परिभाषित नहीं कर सकते...। अब बोलना है तुम्हें...? तुम बोल सकते हो...? बोलना चाहिए, तुम्हें भी? पर, विरोध के लिए बोलना है या तर्क करने के लिए बोलना है तो मत बोलो...? इससे बेहतर तुम्हें चुप रह जाना चाहिए तुम्हें नहीं...तुम जैसे तुम जैसे सब लोगों को चुप रह जाना चाहिए...। क्यूंकि, बोलने से कभी कुछ नहीं बदलता...। बदल सकता है जो कुछ भी, वह भीतर से...। हमें अपने ‘भीतर’ को बेहतर बनाना चाहिए..., ‘भीतर’ यानी आत्मा को बेहतर बनाना चाहिए...। अपने आप को बेहतर बनाना चाहिए ।
‘...।’ उसने कुछ नहीं कहा । वह अपने बोलने का अधिकार मन ही मन छोड़ता जा रहा था ।
- ‘बोलो! आनंद..., बोलना चाहिए । पर, क्या बोलना चाहिए...यह ज़रूर पता हो । बोल कर कोई भी बड़ा नहीं होता...। और मानो कि बोल कर कोई बड़ा हो भी नहीं सकता...। इसलिए, बोलने से बचना चाहिए । आज मजाक का विषय हो सकता है- कि, ... ‘कर्म करो और फल की चिंता मत करो...।’ पर, मजाक कभी भी गंभीर चीज़ों का नहीं किया जा सकता...। लोग करते हैं तो करें...। तुम, इससे बचो नहीं...पर, इस तरह के मजाक में शामिल मत हो...रहो..., जहाँ ‘उपस्थिति’ को सहमति माना जाना है...। वहाँ तो तुम्हें बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिए...यदि, इसमें सलाह भी ज़रूरत पड़े तो ‘अतीत’ और ‘इतिहास’ पर नज़र डाल सकते हो...। सहमति हमें बनानी चाहिए...पर, हम सहमत हैं ऐसा कोई मान ले...इससे बचना चाहिए । तुम तो आनंद हो...तुम्हें इसकी समझ स्वतः होनी चाहिए । अगर आनंद को यह बताना पड़े कि सही-क्या...और गलत क्या...! तो, फिर यही सही कि मुझे तुम्हें चुप रहने की बात कहने की बजाय स्वयं चुप हो जाना चाहिए...। और, सच मानो! चुप रहने से ज़्यादा आनंद कहीं नहीं है ! तुम..., चुप रहोगे तो... तुम ख़ुद देखोगे कि जगत की सारी मौन चीज़ें बोलने लगती हैं..., ये मौन चीज़ें हमारी हमारे सामने क्यूं बोलने लगती हैं...। हमारे मौन होते ही जंगल की सारी चींजें क्यूं बोलने लगती हैं । अगर, आनंद तुम्हें समझ में न आए कभी तो अखिल से पूछना...! अखिल, मुझसे अच्छी व्याखअया कर लेता है... बस !
- आनंद फिर भी चुप रहा ।
उसे मालूम था कि आनंद कुछ भी नहीं बोलेगा । वह जानता है कि आनंद चाहे तो बोल सकता है । पर, क्यूं नहीं बोलते आनंद...। उसकी निगाह खड़ी कार के बाहर के दृश्यों पर दौड़ जाती है । दोपहर से शाम की तरफ़ बढ़ता समय । जुलाई महीन के आखिरी दिन । चढ़ाई की चक्करदार सड़क के बीच के हिस्से में खड़ी कार से अब वह बाहर निकल आया । पेड़ के तने से टिककर उसने एक गिलास बीयर अब धीमी गति से पीने का मन बनाया । अब वह धीमी रफ़्तार से बीयर पी रहा है । उसके ख्याल से लड़की की तरह अब आनंद भी उतराता जा रहा है । बीयर उसके भीतर उतर रही है और वह अपने भीतर ।
उसे चढ़ने-उतरने, ऊपर-नीचे होने और बार-बार उसी खेल में उतरते रहने का अर्थ कभी समझ में नहीं आता । पहले तो वह अर्थ समझना चाहता था । बीच-बीच में उसने इन अर्थों को समझने का प्रयास भी किया । लेकिन अब वह ऐसे किसी अर्थ को समझना नहीं चाहता । उसने पेड़ के तने से अपनी पीठ हटा ली । अब वह एक बड़े से चौड़े पत्थर पर बैठा है । उसने दो घूंट बीयर और पी । एक सिगरेट निकाली । वह धुएं के छल्ले बनाने लगा जो हवा पर ऊपर उठने लगे । उसकी निगाह सिगरेट के छल्लों पर नहीं थी...और न ही वह बादलों को देख रहा ता । ज़मीन की तरफ़ सिर झुका कर वह आँखें बद कर कुछ सोच रहा था । ज़मीन पर झुके सिर और बंद आँखों के बावजूद उसके चैतन्य मन्य पर तस्वीरों की झिलमिल कतार चली जा रही थी, जो बंद आँखों के बावजूद उसके चैतन्य मन्य पर तस्वीरों की झिलमिल कतार चली जा रही थी, जो बंद आँखों के बावजूद उसकी नज़रों के सामने चल रही थे । जब उसके कुछ पराने चित्र...चित्र नहीं, बल्कि अपनी पुरानी तस्वीरें नज़र आईं तो ठहर गया । न तो उसने सिर उठाया और न ही आँखें खोलीं ।
कोई दिन का नौ सवा नौ बजा होगा । उसके हाथ में अर्जी है । उसे वह अर्जी बी साफ दिख रही है और जिसे अर्जी दिना है, वह भी साफ दिख रहा है । अर्जी लेने वाला उसे दिखता है । मुस्कुराता है । वह कोई बात नहीं करता है । जोर से आवाज़ देता है- पी.ए...., पी.ए. को बुलाओं । पी.ए आता है, वह उसकी अर्जी पर देके लिखता है । तुरंत घंटी बजाता है । विधानसभा जाना है, गाड़ी लगाने कहो । पी.ए दौड़ता है । वह खड़ा है । देख रहा है । गाड़ी लगती है । आगे वह है, पीठे गन मैन चल रहा है ।उसने देखा वह उसे देख रहा है और वलह जाते समय उसके हाथों में रखी अर्जी पर लिख गया है- देखें । वह अर्जी को देख रहा है । वह समय को देख रहा है । वह अपने आपको देख रहा है । सब लोग उसे देख रहे हैं ।
उसे किसी का ख्याल नहीं है । वह अपने हाथों पर रखी अर्जी को पढ़ने लगता है । उसे इस बात पर गुस्सा नहीं आता है कि उसका मित्र जैसा भाई मंत्री बन गया है । वह मित्र जो ज़मीन पर उसके साथ बैठा रहता था । राजधानी के दफ्तरों पर, बैंच पर उसके साथ बैठा रहता था...वही भाई उसके हाथों पर लिखकर चला गया...देखें.... देखें.... देखें...। कितना छोटा सा शब्द है न देखें...। वह देख रहा है । समय को भी...और उसे भी जो लिखकर चला गया .... देखें..। अब उसका लिखा यह शब्द वह किस-किस को दिखाता रहेगा । उसे लगा कि यह अर्जी उसने फेंक कर वापस उसके मुँह पर क्यूं नहीं मार दी ।... वह क्यूं इतना सहनशील हो गया । उसे कतई सहनशील नहीं होन चाहिये था । पर, उसे याद आया कि यह अर्जी, उसे नहीं फाड़नी चाहिए... और साफ-सीधी बात यह है कि वह अर्जी फाड़ ही नहीं सकता ।पर, उसने यह ज़रूर तय किया कि वह भी देख लेगा । वह समय को देखने लगा । वह बदलते समय को गेखने लगा । वह उस सफेद टुकड़े को लिए कुछ पलों तक चुप खड़ा रहा । लोग उसे देख रहे थे । वह लोगो को नहीं देख रहा था । वह सोच रहा था । वह यह नहीं सोच रहा था कि उसे यहाँ नहीं आना चाहिए था...बल्कि, वह यह सोच रहा था कि उसने ठीक ही किया जो यहाँ आ गया । वैसे वह विश्वास कर रहा था कि मंत्री-जैसा वह भाई उसकी ‘अर्जी’ पर ‘देखें’ लिखने की बजाय उसके साथ चल पड़ेगा । वह भीड़ में अपनी बात बोलने की बजाय अपनी तकलीफ का उसे बारीकी से अहसास कराना चाहता था । उसे आश्चर्य तब भी नहीं हुआ कि ‘भाई’ ने बिना पढ़े अर्जी पर लिख दिया...‘देखें ।’ वह सिस्टम जानता था कि ‘देखें...’ मतलब चक्कर खाना है । सिर्फ़ चक्कर नहीं बल्कि चक्कर-दर-चक्कर...। उसे अब चक्कर से चिढ़ नहीं...। पर वह इस अर्जी के लिए चक्कर लगायेगा । शर्म नहीं करेगा । उसे लगा कि उसे ठीक समय पर अपनी बात के लिये मंत्री-जैसे भाई का नजरिया समझ में आ गया । अब उसे दूसरे के मामले में कोई दिक्कत नहीं होगी । वह तो यह बाजी ख़ुद जीत लेगा । वह चाहे तो ‘चक्कर’ न भी लगाये...पर वह चक्कर लगायेगा ।
उसने धीर-धीरे कदम बढ़ाये । वह बाहर निकल आया । ...‘कबीर तेई पीर है, जो जाने पर पीर...,जो पर पीर न जानहि है...सो काफिर बेपीर ।’ उसे यह लाइनें आज कितनी गंदी लग रही थीं । अचानक उसने देखा कि चलती तस्वीरों से उसका चेहरा गायब हो गया । वह ऐसे ही आठ-दस गड्ड-मड्ड दृश्यों पर एकसाथ खड़ा है । वह उम्मीद में है कि उसे प्रथम प्राथमिकता मिलेगी । ...आश्चर्य...वह खड़ा है । ...वह खड़ा है । ...वह खड़ा है । ...और वह खड़ा ही है...।
यह दृश्य आज उसे क्यूं अचानक दिख रहे हैं । उसने अचकचा कर आँखें खोल दीं । वह बहुत जोर से चीखा- ‘ड्राईवर...ड्राईवर...।’ वह चाहता तो ड्राईवर को नाम लेकर बुला सकता । उसे याद नहीं पड़ता कि उसने अपने कार के ड्राईवर को कभी चींख कर अथवा जोर से बुलाया हो । ड्राईवर ख़ुद उसकी निगाह और ऊँगलियों की तरफ़ आँख टिकाये रहता ।
ड्राईवर आया । वह कुछ बोला नहीं । उसने आने के बाद गिलास की बची बीयर एक झटके से पी ली । वह समझ नहीं पा रहा है कि उसे आज क्या हो गया है । वह समझना भी नहीं चाहता था ।
‘बीयर बाक्स’ से एक बीयर खोल कर दो और शिशिर के फार्म हाउस...।’ उसने जोर से कार का ढ़क्कन बंद किया । वह कार के दरवाजे को कार का ढ़क्कन ही कहता...और बड़ी बेहूदगी से उसका इस्तेमाल करता । कार का ड्राईवर और आनंद की जगह कोई साथ होता तो सोचता कि वह बेहद गुस्से में है । उसने करीब दस बरसों से गुस्सा छोड़ दिया था । ...वह कभी कहता भी कि- ‘गुस्सा करो भी किस स्साले पर...।’ पर, यह बात भी वह गुस्से में नहीं कहता था ।
वह मौन होता चला जा रहा है । वह उनींदा है अभी । वह गुस्सा हो सकता था । उसे लग रहा ता कि शिशिर की कल की बहस के लिए उससे लड़े, कहे कि एक स्टील फैक्टरी और तीन फार्म- हुऊस रखने के बाद क्या औकात है तेरी...। वह शिशिर से, पर यह नहीं कहेगा । उसने तो तय कर लिया है कि वह किसी से कुछ नहीं कहेगा ।
वह खुली बीयर इस बात गिलास से नहीं, बल्कि बोतल से पी रहा है । उसने ड्राइवर से कहा- गृह मंत्री...और फिर शिशिर से बात कराऔ .उसने मोबाइल पर कहा- शिशिर तुम फार्म हाऊस पहूँचो... मैं आ रहा हूँ ।.....थोड़ी देर में गृह मंत्री पहूँचेंगे । उसने शिशिर से कल हुई बहस का कोई जिक्र नहीं किया । अपने मोबाइल पर शिशिर केतीन शब्द सुनाई दिए- आ रहा हूँ ।
कार सड़क पर दौड़ रही है । वह गिलास से नहीं बोतल से मुँह लगाकर बीयर पी रहा है । बोतल आधी खाली हो चुकी है । उसे पहले नींद आ रही थी । पर, अब वह जाग गया है । उसके हाथों पर मंत्री-जैसी भाई का यह शब्द अभी भी टंका है- देखें । पर, उसके हाथ पर कभी की रखी हुई अर्जी आज गायब है । अर्जी की जगह उसके हाथों पर यह शब्द लिखा है- देखें । वह अपने हाथों को देख रहा है । वह हाथों को देख रहा है । वह हाथों को झटकता है । ऐसा नहीं हो सकता है । उसके हाथों पर देखें शब्द आज भला कौन लिख सकता है । वह हाथों को बार-बार झटकता है, पर अर्जी पर लिखा- देखें....। शब्द उसकी खांखों के सामने लगातार बड़ा होता जा रहा है । उसके मोबाइल पर अचानक आवाज़ उभरती है- सब, मैनेजिंग डायरेक्टर्स की बैठक आपने बुलाई है । दो घंटे से सभी आपका इंतजार कर रहे हैं । .......ठीक है.... उसने कहा और मोबाईल की बटन बंद कर दी ।
बोतल की बीयर एक तिहाई से कम बची थी । वह इस बार भी एक झटके से सारी बीयर पी गया । उसने बीयर की बोतल को अपनी हथेलियों पर नचा कर सकड़ पर फेंकना ही चाहा था कि रुक गया । लेबल पर लिखेनाम पर नज़र पड़ी । वह अपनी ही बनाई फैक्टरी की बीयर पी रहा था ।.... देश की सबसे बड़ी कंपनी की बीयर.... अपनी फैक्टरी की बीयर ।
शिशिर के फार्म हाऊस पर गृह मंत्री की कार पहुँच रही थी । वह ठीक सामने से होकर अपनी फैक्टरी की तरफ़ बढ़ जाना चाहता था । उसे गृह मंत्री से मिलकर बैठने की बजाय अपनी मैनेजिंग डायरेक्टर्स की मीटिंग ज़्यादा ज़रूरी नज़र आ रही थी । उसने फैक्टरी के गेट तक पहुँच ने के ज़रा पहले ड्राइवर से कहा- निखिल अनुज से कहो कि मीटिंग लेकर बस अभी आया । ड्राईवर्स को मालूम है निखिल अनुज गृह मंत्री हैं । उसकी हथेलीयों से देखें शब्द गायब था । वह अपने चेम्बर की सीढ़ियाँ चढ़ रहा था । उसने सिगरेट जलाई । सिगरेट केकाले रंग पर नज़र प़ड़ी तो उसे लम्बी सफेद सिगरेट तोड़ने वाली लड़की यकायक याद आई उसने तीरसी बार यह नहीं सोचा कि यह लड़की उसके जेहन में क्यूं आई । वह धुएं के छल्ले हवा में बनाता ऊपर सीढियाँ चढ़ रहा था ।

कोई टिप्पणी नहीं: