गुरुवार, 22 मई 2008

मनोभावों का कुशल चितेरा


रायपुर के लोकप्रिय समाचार पत्रो में हम कहानीकार सुरेश तिवारी की कहानियाँ जो प्रायः नियमित छपा करती थीं, पढ़ चुके हैं । मछली को दिखता नहीं समुद्र सुरेश तिवारी की कहानी संग्रह ने पाठकों को पर्याप्त प्रभावित भी किया है । एक सोच या एक सामान्य सी प्रतीत होने वाली बात को बड़ी ही सहजता से एक आम आदमी के चिंतन के रूप में प्रस्तुत कर सामाजिक व्यवस्था पर तीखा प्रहार कर देने की क्षमता कहानी कार सुरेश तिवारी में है । व्यक्ति और व्यक्तित्व को परस्पर अभिन्न मानने वाले सुरेश तिवारी चिंतन के धरातल पर मनोभावों के कुशल चितेरे हैं तभी तो टूटता, बिखरता, मूक रुदन करता या बगावत के लिए कसमसाता व्यक्ति, तर्कों और बौद्धिकता के माध्यम अपने व्यक्तित्व को हर झंझावत से बचाता एक अद्भुत दर्शन देने में सफल हो जाता है । कहानीकार सुरेश तिवारी इन अर्थों में अपने पात्रों को समाज का अनिवार्य व जीवंत अंग बना देने में पारंगत है ।

एक कहानीकार होने के नाते मेरे ह्रदय में एक प्रबल कामना थी कि मैं सुरेश तिवारी का सानिध्य प्राप्त करुँ और साहित्य के कहानी विधा पर विचार मंथन करुँ किन्तु शासकीय सेवा में रायपुर से दूरस्थ स्थानों पर पदस्थी के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका । सौभाग्य से छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ और राजधानी रायपुर में मेरी पद स्थापना हुई और सुरेश तिवारी से मिलने की मनोकामना पूर्ण हुई । विभिन्न प्रकाशित उनकी कहानियों और कहानी संग्रह मछली को दिखता नहीं समुद्र के कहानीकार सुरेश तिवारी के प्रति मेरे मानस में जो छवि थी, उससे सर्वथा भिन्न नवयुवक किन्तु विचारों में प्रौढ़ता और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ विकृत सामाजिक परिवेश के प्रति मुखर आक्रोश ने मुझे हतप्रभ कर दिया क्योंकि उन्होंने अपनी ही सृजनात्मकता पर विराम लगा दिया था ।

सन् 1980 से 83 तक लगातार कहानियों के माध्यम से एक आम आदमी के विभिन्न वैचारिक दृष्टिकोणों व मनोभावों को चित्रित करने वाला सशक्त कहानीकार एक लंबे अंतराल तक लेखन से विरत हो जाये, यह मुझे गवारा नहीं था । मैंने इस संबंध में सुरेश तिवारी से लंबी बहस की । उनके आक्रोश युक्त तर्कों को भी गंभीरता से सुना । साहित्य में गुटबाजी, छिछोरी मानसिकता तथा व्यक्ति षड़यंत्र जैसे सर्वव्यापी आरोपों को भी स्वीकार किया किन्तु सुरेश तिवारी जैसे नवयुवक व कहानी के क्षेत्र का सशक्त हस्ताक्षर विपरीत परिस्थितियों के चलते ही सही पलायन करे या लेखन को नकारने लगे, यह साहित्य के लिए एक शुभ संदेश नहीं मान सकता था ।

निस्संदेह, साहित्य की कहानी विधा में सुरेश तिवारी की अच्छी खासी पकड़ है । सामान्य मनोभावों को सामान्य से प्रतीत होने वाले घटना क्रम में पिरोकर पूर्णता के साथ कहानी के रूप में प्रस्तुत कर देना उनकी खासियत है । मुझे प्रसन्नता है कि सुरेश तिवारी ने अपने अंतस के कहानीकार को पुनः प्रस्तुत करने का मन बना लिया है तथा हाथों में कलन थाम लिया है । सुरेश तिवारी यह कहानी संग्रह लौटते हुए परिन्दे उपके समक्ष है । इसमें कुछ कहानियाँ नई तो कुछ विगत की हैं ।

00शिवशंकर पटनायक00

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